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लघुकथा
Monday, 23 July 2018
ऐसा मन...
ऐसा मन जुगनू सा....
हुआ तेरे प्यार में फनाह भी था।
ठीक ही था बस बादल सा ,
फिर कभी बरसता सावन सा।
तेरे लिए दिल के दिए जलाये ,
राह देखता पागल सा।
ऐसा मन मेरा....., जुगनू सा।
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